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आसिफ को दूसरा मौका

आसिफ अपने बिस्तर के किनारे बैठा था, खिड़की से बाहर टिमटिमाती स्ट्रीटलाइट को देख रहा था। कमरा शांत था, सिर्फ दूर से आती गाड़ियों के हॉर्न की आवाज़ कभी-कभी सुनाई दे रही थी। यह साल उसके लिए बहुत मुश्किल भरा रहा था।

एक साल पहले तक, उसकी जिंदगी बिल्कुल सही थी—एक अच्छी नौकरी, प्यार करने वाली पत्नी और एक सुरक्षित भविष्य। लेकिन एक गलती, एक लापरवाही का पल, और सबकुछ बिखर गया। उसने गलत लोगों पर भरोसा किया, एक खराब आर्थिक फैसला लिया, और देखते ही देखते, कर्ज में डूब गया। उसकी पत्नी, इस तनाव को सहन न कर सकी और उसे छोड़कर चली गई। उसके बॉस, जो कभी उसकी तारीफ किया करते थे, ने उसे नौकरी से निकाल दिया। अब वह इस विशाल और बेरहम शहर में बस एक और संघर्ष करता हुआ इंसान बन गया था।

एक शाम, जब वह यूं ही बिना किसी मकसद के सड़कों पर भटक रहा था, तो उसे एक पुरानी किताबों की दुकान दिखी। अंदर से आती हल्की रोशनी ने उसे आकर्षित किया और वह भीतर चला गया। दुकान लगभग खाली थी, बस एक बूढ़े आदमी ने काउंटर के पीछे बैठे-बैठे उसे देखा।

"तुम्हें देखकर लगता है कि तुम खोए हुए हो," बूढ़े आदमी ने चश्मा ठीक करते हुए कहा।

आसिफ ने गहरी सांस ली। "शायद हां।"

बूढ़े आदमी ने मुस्कुराते हुए काउंटर के पीछे से एक पुरानी किताब निकाली। "इसने कभी मेरी मदद की थी। शायद ये तुम्हारी भी कर सके।"

आसिफ ने झिझकते हुए किताब ली। उस रात, उसने उसे पूरा पढ़ डाला। यह एक ऐसे आदमी की कहानी थी जिसने सबकुछ खो दिया था, लेकिन अपनी हिम्मत और दयालुता से खुद को फिर से खड़ा किया।

आसिफ के भीतर कुछ बदल गया। शायद वह पूरी तरह खत्म नहीं हुआ था। शायद वह फिर से शुरुआत कर सकता था।

अगली सुबह, उसने किताबों की दुकान में नौकरी के लिए आवेदन किया। बूढ़े आदमी ने तुरंत उसे रख लिया। महीनों में, आसिफ ने न सिर्फ किताबों के बारे में सीखा बल्कि लोगों के बारे में भी—कैसे कहानियां उन्हें जोड़ती हैं, कैसे शब्द घावों को भर सकते हैं। धीरे-धीरे, उसने अपनी जिंदगी को फिर से संवार लिया।

एक दिन, जब वह किताबों की अलमारी लगा रहा था, उसने दरवाजे पर किसी को खड़ा देखा—वह थी, उसकी पत्नी। वह झिझक रही थी, लेकिन उसकी आँखों में उम्मीद थी।

"क्या हम बात कर सकते हैं?" उसने धीमे स्वर में पूछा।

आसिफ हल्का-सा मुस्कुराया। "हाँ," उसने कहा, यह जानते हुए कि इस बार वह अपनी जिंदगी को इतनी आसानी से फिसलने नहीं देगा।

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