### **गुरु घासीदास जी: संपूर्ण जीवन परिचय एवं शिक्षाएँ**
#### **1. प्रारंभिक जीवन**
- **जन्म:** 18 दिसंबर 1756, गिरौदपुरी (वर्तमान छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले में)
- **माता-पिता:** महंगू दास (पिता) और अमरौतिन बाई (माता)
- **जाति:** चमार (हरिजन) समुदाय से थे, लेकिन जाति व्यवस्था का घोर विरोध किया
#### **2. आध्यात्मिक जागरण**
- 12 वर्ष की उम्र में घर छोड़कर जंगल में तपस्या की
- 12 साल तक गहन साधना कर **"सतनाम" (परम सत्य)** का ज्ञान प्राप्त किया
- कबीर, रैदास और नानक के विचारों से प्रभावित थे
#### **3. सतनाम पंथ की स्थापना**
- **मूल सिद्धांत:**
- एक ईश्वर (सतनाम) में विश्वास
- मूर्ति पूजा का विरोध
- जाति व्यवस्था का खंडन
- शाकाहार और नशामुक्ति पर जोर
- **7 मूल नियम:**
1. सतनाम का जाप
2. मूर्ति पूजा न करना
3. जाति भेद न मानना
4. मांस-मदिरा त्याग
5. झूठ-चोरी से दूर रहना
6. ईमानदारी से मेहनत करना
7. गुरु घासीदास की शरण लेना
#### **4. सामाजिक क्रांति**
- **जाति उन्मूलन:** "जाति-पाति पूछे नहिं कोई" का नारा दिया
- **स्त्री शिक्षा:** महिलाओं को धार्मिक शिक्षा देने का प्रचलन शुरू किया
- **लंगर प्रथा:** सभी जातियों को एक साथ बैठकर भोजन कराया
- **श्रम की महिमा:** स्वयं खेती और शारीरिक श्रम करके उदाहरण प्रस्तुत किया
#### **5. चमत्कारिक घटनाएँ**
- मृत बछड़े को जीवित करना
- अंधे को आँखें देना
- जहरीले कुएँ का पानी शुद्ध करना
- सूखे खेत में फसल उगाना
#### **6. विरासत**
- **गुरु घासीदास विश्वविद्यालय:** बिलासपुर में स्थित
- **गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान:** कोरिया जिले में
- **गिरौदपुरी धाम:** समाधि स्थल, प्रमुख तीर्थ
- **सतनामी समुदाय:** आज भी 50 लाख से अधिक अनुयायी
#### **7. प्रमुख उपदेश**
- "सतनाम सत्य है, बाकी सब झूठ"
- "करम धरम करो, पर निंदा मत करो"
- "मन चंगा तो कठौती में गंगा"
- "जाति-पाँति पूछे नहिं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई"
#### **8. मृत्यु एवं स्मृति**
- **निधन:** 1836 में गिरौदपुरी में
- **जयंती:** 18 दिसंबर को राज्य स्तर पर मनाई जाती है
- **समाधि स्थल:** गिरौदपुरी में सफेद मंदिर
#### **9. आधुनिक प्रासंगिकता**
- छत्तीसगढ़ की सामाजिक-राजनीतिक पहचान का प्रतीक
- दलित सशक्तिकरण आंदोलन के प्रेरणास्रोत
- पर्यावरण संरक्षण के विचार आज भी प्रासंगिक
**विशेष तथ्य:**
गुरु घासीदास ने कभी कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं लिखा, पर उनके उपदेश "सतनामी बानी" के रूप में संरक्षित हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने उनके नाम पर कई योजनाएँ चलाई हैं, जिसमें "गुरु घासीदास अन्नदाता सम्मान" प्रमुख है।
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